शुगर की बीमारी जिसे हम सामान्य बोलचाल की भाषा में मधुमेह या डायबिटीज के रुप में भी जानते हैं यह राजरोग के रुप में इन्सानी शरीर में अपनी जडें जमाता है और एक बार शरीर में जम जाने के बाद यह रोगी के शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता पर ऐसा प्रभाव डालता है कि इससे रोगी को न सिर्फ शरीर में होने वाले छोटे-मोटे घावों का अहसास नहीं हो पाता बल्कि उसके शारीरिक घाव लम्बे समय तक ठीक भी नहीं हो पाते और बढते ही चले जाते हैं, यही कारण है कि इस रोग से पीडित ऐसे अनेकों व्यक्ति जिन्हें चलने-फिरने के दरम्यान पैरों में कंकड-कांटे चुभने मात्र से भी जो घाव बने उनमें अधिकांश रोगी शरीर से पैर का पंजा कटवा देने की विकराल स्थिति तक इस रोग की भयावहता को झेलते देखे जा सकते हैं और अपने पैर का पंजा गंवा चुके ऐसे रोगी तब भी अपना आगे का जीवन नहीं बचा पाते और इस कारण से इस जबर्दस्त शारीरिक व मंहगे चिकित्सकीय उपचार में लगने वाली आर्थिक क्षति को झेलने के बाद भी अगले साल-छः महिने से दो-तीन साल की अवधि में अक्सर उन्हें मृत्यु के मुख में जाते हुए भी देखा जाता रहा है । यद्यपि मधुमेह की गिरफ्त में आते ही यह स्थिति एकाएक नहीं बनती लेकिन बिगडी हुई स्थिति में इस रोग का चरम प्रायः यही देखने में आता रहा है ।
इस भयावह रोग से बचाए रखने व यदि यह रोग हो चुका हो तो इसे नियंत्रित रखते हुए रोगमुक्त करवा सकने की दिशा में एक विशेष किस्म के दुर्लभ वृक्ष की लकडी वरदान साबित हो रही है जिसे हम विजयसार के नाम से पहचान रहे हैं । मधुमेह (डायबिटीज) रोग को नियंत्रित रखने में इस दुर्लभ वृक्ष की लकडी को विशेष उपयोगी पाया गया है । इस लकडी के टुकडों को किसी भी सामान्य कांच के गिलास में पीने के लगभग 100-150 ml. पानी में डालकर रख देने पर अगले 8-10 घंटों में वह पानी लगभग लाल रंग की रंगत में आकर व उस पर एक तैलीय सतह बनाकर हमारे शरीर के लिये इतना गुणकारी बन जाता है कि इस पानी को नियमित रुप से रात में रखा गया पानी दूसरे दिन सुबह नाश्ते के पूर्व एवं सुबह फिर से भरकर रखा गया पानी उसी दिन शाम को भोजन के लगभग आधा घंटा पूर्व पीने के क्रम को कम से कम 6 माह तक पीने वाले डायबिटीज (मधुमेह) रोगी स्वयं के शरीर में रोग पर नियंत्रण व जीवन में स्फूर्ति के साथ ही रोग-मुक्ति के प्रमाण के रुप में स्वयं देख व जाँच सकते हैं । विजयसार वृक्ष की यह लकडी न सिर्फ मधुमेह के रोगी को रोगमुक्त करने में रामबाण के समान उपयोगी साबित हो रही है बल्कि मधुमेह की बीमारी के चलते शरीर में जो सहायक रोग जैसे अत्यधिक भूख लगना, शारीरिक कमजोरी, जोडों में दर्द, मोटापा, पैरों में सुन्नता इनमें भी बचाव हेतु उपयोगी साबित हो रही है ।
इस लकडी के संसर्ग में रखे पानी की उपयोगिता को देखते हुए कुछ कम्पनियाँ इसी लकडी के छोटे ग्लास भी बनाकर उपलब्ध करवाती हैं और चाहे इसीकी लकडी के ग्लास में पानी रखें या पानी में इसकी लकडी का टुकडा डाल कर रखें अधिकतम 3 दिन में इसकी लकडी का टुकडा और 5-7 दिन में ग्लास का पानी अपनी रंगत बदलना बंद कर देता है याने अपना असर खो चुकता है ऐसी स्थिति में इसके ग्लास को अंदर से खुरचकर या लकडी के टुकडे को बदलकर इसके संसर्ग में बनने वाले लाल रंग की रंगत के इस पानी को जिसे हम अमृत-रस भी कहते हैं इसके सेवन से शरीर को रोगमुक्त बनाये रखने का प्रयास आप कर सकते हैं । इस अमृतरस के मानव शरीर में-
जोडों के दर्द से मुक्ति,
हाथ-पैरों में कंपन व शारीरिक कमजोरी दूर करना, और
शरीर से अतिरिक्त वसा को निकालते चले जाने के कारण मोटापा कम करना.
जैसी अन्य समस्याओं के उपचार में भी चमत्कारिक परिणाम मिलते देखे जाते हैं ।
इस भयावह रोग से बचाए रखने व यदि यह रोग हो चुका हो तो इसे नियंत्रित रखते हुए रोगमुक्त करवा सकने की दिशा में एक विशेष किस्म के दुर्लभ वृक्ष की लकडी वरदान साबित हो रही है जिसे हम विजयसार के नाम से पहचान रहे हैं । मधुमेह (डायबिटीज) रोग को नियंत्रित रखने में इस दुर्लभ वृक्ष की लकडी को विशेष उपयोगी पाया गया है । इस लकडी के टुकडों को किसी भी सामान्य कांच के गिलास में पीने के लगभग 100-150 ml. पानी में डालकर रख देने पर अगले 8-10 घंटों में वह पानी लगभग लाल रंग की रंगत में आकर व उस पर एक तैलीय सतह बनाकर हमारे शरीर के लिये इतना गुणकारी बन जाता है कि इस पानी को नियमित रुप से रात में रखा गया पानी दूसरे दिन सुबह नाश्ते के पूर्व एवं सुबह फिर से भरकर रखा गया पानी उसी दिन शाम को भोजन के लगभग आधा घंटा पूर्व पीने के क्रम को कम से कम 6 माह तक पीने वाले डायबिटीज (मधुमेह) रोगी स्वयं के शरीर में रोग पर नियंत्रण व जीवन में स्फूर्ति के साथ ही रोग-मुक्ति के प्रमाण के रुप में स्वयं देख व जाँच सकते हैं । विजयसार वृक्ष की यह लकडी न सिर्फ मधुमेह के रोगी को रोगमुक्त करने में रामबाण के समान उपयोगी साबित हो रही है बल्कि मधुमेह की बीमारी के चलते शरीर में जो सहायक रोग जैसे अत्यधिक भूख लगना, शारीरिक कमजोरी, जोडों में दर्द, मोटापा, पैरों में सुन्नता इनमें भी बचाव हेतु उपयोगी साबित हो रही है ।
इस लकडी के संसर्ग में रखे पानी की उपयोगिता को देखते हुए कुछ कम्पनियाँ इसी लकडी के छोटे ग्लास भी बनाकर उपलब्ध करवाती हैं और चाहे इसीकी लकडी के ग्लास में पानी रखें या पानी में इसकी लकडी का टुकडा डाल कर रखें अधिकतम 3 दिन में इसकी लकडी का टुकडा और 5-7 दिन में ग्लास का पानी अपनी रंगत बदलना बंद कर देता है याने अपना असर खो चुकता है ऐसी स्थिति में इसके ग्लास को अंदर से खुरचकर या लकडी के टुकडे को बदलकर इसके संसर्ग में बनने वाले लाल रंग की रंगत के इस पानी को जिसे हम अमृत-रस भी कहते हैं इसके सेवन से शरीर को रोगमुक्त बनाये रखने का प्रयास आप कर सकते हैं । इस अमृतरस के मानव शरीर में-
जोडों के दर्द से मुक्ति,
हाथ-पैरों में कंपन व शारीरिक कमजोरी दूर करना, और
शरीर से अतिरिक्त वसा को निकालते चले जाने के कारण मोटापा कम करना.
जैसी अन्य समस्याओं के उपचार में भी चमत्कारिक परिणाम मिलते देखे जाते हैं ।
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